शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

चोट

यूं तो पहले भी ,
कई बार ,ठोकर लगी ,
लडखडाया , गीर पड़ा ,
घाव लगा ,दर्द उठा
निशान उभरा ,
शरीर था ज़ख्मी हुआ ,
सब सह गया .
ज़ख्म भरा ,टीस मिटा
दाग हटा ,हो खडा ,
फ़िर चल पड़ा .
शरीर था ,सो ,
पहले जैसा हो गया .
अबकी , जो चोटिल हुआ
घाव है, नासूर बना ,
रोने लगा ,मन बावला
बेअसर है , दुआ- दवा
बस अंतहीन है ,वेदना
दरसल
इसबार है घायल आत्मा
बस आत्मा ..................
अमिताभ

2 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सत्य स्वरुप उजागर किया है आपने इमानदारी से मेरी नई रचना सम्पूर्ण देश की हवा एक है अवश्य पढ़ें आपका स्वागत है

Amit K Sagar ने कहा…

सटीक. बेहतर.