रविवार, 17 मई 2020

अब शहर नही हम आएंगे..

मज़दूर हो तुम
मजबूर हो तुम
हां पोर पोर
अब दर्द थकन से
चूर हो तुम

फिर भी
साहस से
संकल्पों से
परिपूर्ण हो तुम

मुझे कहने में संकोच नही
अब रत्ती भर
हां ,जीवट के
महावीर हो तुम

तुम हो धुरी निर्माणों की
नव भारत के अरमानों की
कारखानों की गोदामो की
दफ़्तर और दुकानों की
तुम हो बैसाखी शहरों की
भोजन , बर्तन ,कपड़ा,गाड़ी
बच्चा, कुत्ता,चौकीदारी
सब तुम से है सब तुम पे है

फ़िर भी
अपमान व्यंग सब सदा तुम्हारे हिस्से है
ग़म ग़ुरबत और तकलीफ़ तुम्हारे किस्से है

अब है समय, सौगन्ध उठाने का
संकल्प शक्ति दिखलाने का
समवेत स्वर से
गांव ,शहर गुंजाने का

कहो चीख़ कर, सत्ता के मतवालों से
नौकरशाहों और दलालों से
अब शहर नही हम आएंगे

पूंजी के पोसपूतों तुमको
अबकी नानी याद दिलाएंगे
हृदयहीन हुक्मरानों तुमको
अबकी घुटने पर हम लाएंगे
शासन के हर दोहरेपन की
अबकी बत्ती हम बनाएंगे
मेहनतकश की बेकद्री का
मूल्य तुम्हे समझाएंगे
अबकी शहर नही हम आएंगे

है सौगंध तुम्हे
उन सरकारी आदेशों की
जिसने तुमसे खाना छीना
पानी छीना ,दाना छीना
बच्चों का निवाला छीना
हा जिसने तुमको
प्यास दिया ,कुतर्क कहा
उपहास किया,

मीलों का भूगोल मापते
छाले वाले, पैरों की
सौगन्ध तुम्हे,

सौगंध तुम्हे
उन हमकदमो की
जो रस्ते मे ही छूट गए

सौगन्ध तुम्हे उन सब की भी
जिन्हें मौत मिली है पटरी की
जो कुचले गए है सड़को पर
जो पिटे गए है
ज़िले ज़िले के बॉडर पर

उन दुधमुंहों की सौगन्ध तुम्हे
जो माँ की सूखी छाती से
पहरों लिपटे उम्मीद लिए
कुछ कतरो की कुछ बूंदों की

है सौगन्ध तुम्हे उन माँओ की
जो पीड़ा प्रसव सहते
सहते दम तोड़ गई
परिवार अकेला छोड़ गई

भोगा जो सब है तुमने
उन सब की है सौगंध तुम्हे

कह दो संकल्प की ताकत से
सत्ता के ठेकेदारों से
सब पक्ष के जिम्मेदारों से
सरकारों से
हम शहर नही अब आएंगे

तुम करो हिफ़ाज़त
वंदे भारत वालो की
हम डंडे भारत वाले है

अब गांव ही रह जाएंगे
भात खुददी का खाएंगे
सतुआ पीकर रह जाएंगे
कोदो ,कउनी,शकरकंद
उपजाएँगे।
अब अपनी माटी में खुरपी
कुदाल चलाएंगे।
चाहे जो भी हो
अब शहर नही हम आएंगे

हम श्रमयोद्धा है मिट्टी के
पूंजी के पोसपूतो तुमको
हम नानी याद दिलाएंगे
मज़दूरों का मूल्यबोध
अब तुमको हम समझाएंगे।

और याद रहे
दरवाज़े पर सोंटा लेकर
राह तकूँगा बरस बरस
जब आओगे तुम
वोट मांगने गांव में
तुमको लाठी का स्वाद बताएंगे
जब लोकतंत्र को सार्थक करने
बूथ बूथ हम जाएंगे

उस रोज,
जो तुमने दिया है घाव  हमे
हम उसका भाव बताएंगे।

सहना सुनना बहुत हुआ
अब शहर नही हम आएंगे
अब शहर नही हम आएंगे

© अनहद