शनिवार, 20 जून 2009

सफर

शुक्रिया ओ हमराही
हमसाया आप का शुक्रिया
ख़त्म हुआ ,मुदद्तो का मुईज्ज़ा
लो सफर पूरा हुआ ,
वक्त आ चला है , रुख़सत का ,
थम गया अब कारंवा ,
सवालों का जबाबो का
हँसने, हँसाने का
रूठने , मनाने का
लड़ने , रुलाने का
डांटने , चिढाने का
समझाने , झुंझलाने का
एक साथ खाने का
मन्दिर में ,साथ सर झुकाने का
अब तो बस बासबब -
बेइंतिहा है सिलसिला
एहसास का ,एतबार का
याद का जज़्बात का
ख्वाब और ख्याल का(२)////
अनहद

8 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुकियादा करना चाहती हूँ आपकी सुंदर टिपण्णी के लिए!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी!आपने बहुत सुंदर कविता लिखा है जो काबिले तारीफ है! लिखते रहिये!

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

सुन्दर, सार्थक, विलक्षण प्रयास.

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सुंदर प्रयास है ....लफ्जों को भी बखूबी पिरोया है आपने ...और बेहतर की उम्मीद है .....!!

satish kundan ने कहा…

बहुत कुछ कहती है आपकी कविता....परन्तु याद रखिये सफ़र कभी खत्म नहीं होता वो तो मंजिल के दरम्यान कोई मोड़ आ जाती है या फिर मंजिल ही आ जाती है...क्या कोई इस वजह से रुकता है??????????

Ravi Prakash ने कहा…

उर्दू शब्दों का बहुत ही बढिया तालमेल कर लिखी गयी रचना, लाज़बाब

संगम Karmyogi ने कहा…

bhai sahab safar tabhi khatm hota hai..jab saans ruk jati hai...!
safar to ab shuru hua hai..abhi bahut aage jana hai!

Unknown ने कहा…

amitabh ji... aap ne kuch hi paktiyon mein bahut kuch kah diya... jis dard bhare shabdo mein aapne likha hai..unka ehsaas padhne wale ki aankho mein uttar aayega...sach mein pehle wali kavita bahut achai hai...usme wo line jis mein aapne likha ki sath sir jhukne ki....bahut acha likha hai...
dusri wali kavita bhi bahut sahi hai aur achi hai par aap usme bahut kuch aur likh sakte the...isi tarah likhte rahiye...lekin fir bhi aapne kam shabdo mein bahut kuch kah diya

Unknown ने कहा…
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