शनिवार, 8 नवंबर 2008

डाउन टू अर्थ

वो हमेशा कहती थी
डाउन टु अर्थ रहना
हकीकत में जीना
व्यावहारिक बनना
उड़ने से पहले
पंखो को तोलना
हवाओ से डरना
सपने मत बुनना
नॉर्मल बीहैब रखना
इंसान की तरह रहना
मैं लाचार था ,आदतों से
हरदम रहता था ,
सातवे आसमान में
सोचता था
मेरे ख्वाब ही हकीकत है
बीना पंख उड़ना
हवाओ से लड़ना
सपनो में रंग भरना
उल्टी -सीधी हरकते करना
औरो से अलग दिखना
सबसे जुदा सोचना
शगल थे मेरे
अचानक हवाओ ने
रुख बदला ,चुपके से
गीर पड़ा मैं ,
धम्म से , जमीन पे
लहूलूहान हो गए
ख्वाब सारे
दर्द के एहसास में
आंसूओं की बरसात में
मिट गए ,घरोंदे माटी के
कुछ यूँ निकल गया वक्त हाथ से
जैसे फिसला हो रेत ,बंद मुठ्ठी से
सब कुछ खो के
अब समझ आए मुझे
मायने ,डाउन टु अर्थ के ...............................................................
अमिताभ "अनहद "

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

ख़बर का खेल

नमस्कार ,स्वागत है आपका
ख़बर के खेल में
आरम्भ नियम व शर्त से
खिलाड़ी ,वंशानुगत ,प्रभाव वाले
बगैर विचारे प्रवेश ले
नवोदित,पहुंच विहीन
दूर रहे इस खेल से
अन्यथा ,
उम्मीद पाले ,संघर्ष करे
अनिश्चितकाल के लिए
भुला कर ज्ञान सारे किताब के
दक्ष बने चाटुकारिता में
ज़मीर अपना बेच दे
मन को मसोर के
सोच को मरोर के
शर्म -हया निचोड़ के
नंगापन के पैरोकार बने
भूख,गरीबी ,दर्द,दुःख
जमकर इनका व्यापार करे
मर्यादा का त्याग करे
संस्कारो को दाह के
देह ,मांस ,भक्षण करे
नित्य सूरा सेवन करे
टीआरपी के जनून में
मानवता का खून करे
झूठ के गरूर में
नाम के सरुर में
छल और प्रपंच से
खूब सारा स्टिंग करे
कल्पनाओं को उड़ान दे
रोज नई कथा बुने
तकनीक के कमाल से
उन्हें सदा ठगते रहे
बैठे है जो बेचारगी से
बुद्धू -बक्से के सामने
बस इतना ही इस अंक में
फ़िर मिलेंगे बाद में
बने रहिये साथ में ............................
अमिताभ"अनहद"