गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

यादों की अटैची -------



बोझिल दिन के बाद 
अब बारी थी उनिंद रात की, 
कैलेंडर के मुताबिक़
आज की रात सोलहवीं रात थी
देशव्यापी,कोरोना कारावास की

पिछली रातों की तरह 
गीत,ग़ज़ल,कविता सब 
सुनने-पढ़ने के बाद भी
अभी रात तीन पहर शेष थी

कुछ ग़ैर जरूरी ,कपड़ें थे 
खूंटी पर टंगे 
उन्हें मोड़कर रखने लगा, आलमीरे  में
तभी नीचे वाली दराज़ पर नज़र गयी 
वहां रखी थी
मेरी सबसे बेशकीमती ,अटैची

कुबेर के ख़ज़ाने से 
कही ज्यादा क़ीमती ,
यादों की अटैची
हां यादों की अटैची

अरसे बाद रात 
फुरसत से खोली थी ,
मैंने स्मृतियों की संदूकची

कुछ पुराने रेल टिकट ,
कुछ कागज़ के पुर्जे
जीवाश्म की शक्ल ले रहे 
15 बरस पुराने 
कुछ चॉकलेट,
कुछ खाली रैपर,
दो पेपर और स्टिकर,गिफ़्ट पैक की,
तब की ,थीन पेपर -कार्बन, 
कुछ फ्लॉपी और सीडी भी,
एक चावल का दाना 
दाने पर दर्ज दोस्तो के नाम
और एक डायरी भी,

डायरी जिसके हर्फ़ हर्फ़ में
दर्ज है,प्रार्थनाएं,मंगलकामनाएं,

छोटे बड़े सपने और उनके पीछे
शिद्दत से भागने की मुकम्मल कहानी
दर्जनों, मीठे,नमकीन किस्से
बहुत सी कही -अनकही
मौन और चुप्पी भी

हज़ारों लम्हे, कुछ बेहद ख़ास रिश्ते, 
थोड़ी बेबकूफियां,बहुत सी निशानियां ,
वादों की फ़ेहरिस्त, बतकहियों का दौर
कहकहों की गूंज ,गीत-ग़ज़ल का सिलसिला
तबले की थाप,सर का आशीष
पूरे मन से लिखी दर्जन भर ज्यादा काव्य रचनाएं
और इन सब के बीच
पेज़ और वक़्त से फाड़ी गयी
एक बेहद खास कविता की रिक्तता भी
वैसे ही जस की तस
मौजूद है इस वक़्त भी डायरी के पन्ने में 

कमाल ये की सब कुछ 
दिन ,तारीख़ और वक़्त के साथ दर्ज है,

फ़िलहाल निहाल तो इस बात से हूं,
की डायरी के पन्ने बस अल्फ़ाज़ भर नही है, 

शब्द,भाव,दृश्य,चेहरे,घटना
सब के सब 
आज भी जीवंत है,

शब्दो की ऊष्मा 
अब भी मौजूद है 
हर अक्षर हर पृष्ठ में
और ये सब फिर से
जिया है मैंने
यादों की अटैची से।।

अनहद