सोमवार, 16 जनवरी 2012

हम और हमारा हिस्सा

अनहद याद
उजली रात
उनींद आँख की लडाई में
अनायास उसने कहा-
कुदरत हिस्से से ज्यादा
कभी किसी को कुछ नहीं देता !

तो क्या वो मेरे हिस्सें में नहीं थी ?
क्या मै भी उनके हिस्सें में नहीं था ?

माफ़ करना दोस्त
कुदरत का गणित ख़राब है
हिस्सा लगाना ,बाँटना शऊर का काम है |

जिस रोज बेशऊर कुदरत को यह शऊर आ जायेगा ,
उस रोज मुझे मेरे हिस्सें कोई शिकवा नहीं होगा |
और हाँ उस रोज, हम हिस्सों में नहीं होंगे
हम और हमारा हिस्सा एक होगा ||||

अनहद