रविवार, 14 सितंबर 2008

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा , सपनो के सच होने का
अब भी है मुझे ,
हताश नही हू ,मैं
हमेशा की तरह
देख रहा हू
रात औ दिन
बरे - बरे सपने
सपनो का टूटना
सपनो का जुटना

चलता रहता है, जीवन में
सपनो के बिखरने से
हमेशा हौसला
मिला है मुझे
तभी तो आज फ़िर से
प्रतीक्षारत हू में
उमर भर के लिए ?
नही, आगे के सभी जन्मो
के लिए

अमिताभ भूषण

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