मैं दिया ,उम्मीद का,
जलता रहूँगा ,उम्रभर
हर रोज ,अँधेरी रात से ,
लड़ता रहूँगा, उम्रभर
मैं जलूँगा ,तम् हरूँगा ,
लौ न अपनी, मै कभी ,
मध्यम करूँगा ,
आंधी औ तूफान में भी ,
मैं सदा जलता रहूँगा .
साथ उनके, हर कदम पर ,
मैं रहूँगा ,उम्रभर
राह उनकी , हर घड़ी ,
रौशन करूँगा ,उम्रभर
बस अकेला, मैं यूं ही,
जलता रहूँगा ,सफर की ,
दुस्वारियो को ,
दूर करता ही रहूँगा ,उम्रभर
मैं दिया ,उम्मीद का ..........
अमिताभ
2 टिप्पणियां:
dil ke karib lagti hai aapki kavita. satish.......
adhbhut,alaukik,avismarniya,
avishvasaniya....
kaafi suljhi hui lekhni hai...!
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